Ziauddin barani biography in hindi

ज़ियाउद्दीन बरनी

ज़ियाउद्दीन बर्नी (–) एक इतिहासकार एवं राजनैतिक विचारक था जो मुहम्मद बिन तुग़लक़ और फ़िरोज़ शाह के काल में भारत में रहा। 'तारीखे फ़ोरोज़शाही'[1] उसकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है।ज़ियाउद्दीन बर्नी (–) एक इतिहासकार एवं राजनैतिक विचारक था जो मुहम्मद बिन तुग़लक़ और फ़िरोज़ शाह के काल में भारत में रहा। 'तारीखे फ़ोरोज़शाही'[1] उसकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है।

परिचय संपादित करें उसका जन्म सुल्तान बलबन के राज्यकाल में ई.

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उसकी रचनाओं में तारीखे फ़ीरोज़शाही Archived pressurize the वेबैक मशीन का बड़ा महत्व है। इसकी प्रस्तावना में उसने इतिहास की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए इतिहासकार के कर्तव्य का भी उल्लेख किया है। इस इतिहास में उसने सुल्तान बलबन के राज्यकाल से लेकर सुल्तान फ़ीरोज़ के राज्य काल के प्रथम छह वर्षों तक का इतिहास लिखा है। बर ज़ियाउद्दीन बर्नी (–) एक इतिहासकार एवं राजनैतिक विचारक था जो मुहम्मद बिन तुग़लक़ और फ़िरोज़ शाह के काल में भारत में रहा। 'तारीखे फ़ोरोज़शाही'[1] उसकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है।

परिचय संपादित करें उसका जन्म सुल्तान बलबन के राज्यकाल में ई.

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परिचय संपादित करें उसका जन्म सुल्तान बलबन के राज्यकाल में ई.

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परिचय

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उसका जन्म सुल्तान बलबन के राज्यकाल में ई.

में हुआ जिसने तक राज किया । उसका नाना, सिपहसालार हुसामुद्दीन, बलबन का बहुत बड़ा विश्वासपात्र था। उसके पिता मुईदुलमुल्क तथा उसके चाचा अलाउलमुल्क को सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी तथा सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के राज्यकाल में बड़ा सम्मान प्राप्त था। ज़ियाउद्दीन बरनीArchived at the वेबैक मशीन ने अपनी बाल्यावस्था में अपने समकालीन बड़े बड़े विद्वानों से शिक्षा प्राप्त की थी। वह शेख निज़ामुद्दीन औलिया का भक्त था। अमीर खुसरो का बड़ा घनिष्ठ मित्र था। अन्य समकालीन विद्वानों एवं कलाकारों से भी वह भली भाँति परिचित था। सुल्तान फ़ीरोज़ तुग़्लाक़ के राज्यकाल में उसे अपने शत्रुओं के कारण बड़े कष्ट भोगने पड़े। वह बड़ी ही दीनावस्था को प्राप्त हो गया। कुछ समय तक उसने बंदीगृह के भी कष्ट भोगे। उसने अपने समस्त ग्रंथों की रचना सुल्तान फ़ीरोज़ के राज्यकाल में ही की किंतु उसे कोई भी प्रोत्साहन न मिला और बड़ी ही शोचनीय दशा में, 70 वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु हुई। सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़्लाक के राज्य काल में उसकी बड़ी उन्नति हुई। संभवत: वह सुल्तान का नदीम (सहचर) था। आलिमों तथा सूफ़ियों से संपर्क स्थापित करने में उसकी सेवाओं से बड़ा लाभ उठाया जाता होगा। बड़े बड़े अमीर एवं पदाधिकारी उसके द्वारा अपने प्रार्थनापत्र सुल्तान की सेवा में प्रस्तुत करते थे। देवगिरि की विजय की बधाई फ़ीरोज़ शाह, मलिक कबीर तथा अहमद अयाज़ ने उसी के द्वारा सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़्लाक़ की सेवा में प्रेषित की।

उसकी रचनाओं में तारीखे फ़ीरोज़शाहीArchived at the वेबैक मशीन

ज़िंदगी

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बरनी का जन्म में उत्तरी भारत के बारां (अब बुलंदशहर) के एक भारतीय मुस्लिम परिवार में हुआ था, इसलिए उनका नाम निस्बा बरनी रखा गया।[2] उनके पूर्वज भारतीय शहर कैथल, हरियाणा से बारां में आकर बस गए थे।[3] उनके पिता, चाचा और दादा सभी दिल्ली के सुल्तान के अधीन उच्च सरकारी पदों पर काम करते थे। उनके नाना हुसाम-उद-दीन, गयासुद्दीन बलबन के एक महत्वपूर्ण अधिकारी थे और उनके पिता मुवैयिद-उल-मुल्क जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी के बेटे अरकली खान के नायब के पद पर थे। उनके चाचा काजी अला-उल-मुल्क अला-उद-दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान दिल्ली के कोतवाल (पुलिस प्रमुख) थे। बरनी ने कभी कोई पद नहीं संभाला, लेकिन सत्रह वर्षों तक मुहम्मद बिन तुग़लक़ का नदीम (साथी) रहा। इस दौरान वे अमीर ख़ुसरो के काफी करीब थे। तुगलक के अपदस्थ होने के बाद, वह समर्थन से बाहर हो गया। "निर्वासन" में उन्होंने सरकार, धर्म और इतिहास से संबंधित दो लेख लिखे, जिससे उन्हें उम्मीद थी कि वे उन्हें नए सुल्तान, फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ का प्रिय बना देंगे। उनके कार्यों के लिए उन्हें पुरस्कृत नहीं किया गया और में गरीब होकर उनकी मृत्यु हो गई।

सन्दर्भ

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संदर्भ ग्रंथ

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उसकी रचनाओं के अतिरिक्त

  • रिज़वी, सै.

    अ.

    Senyaka kekana biography of abraham

    अ.; आदि तुर्ककालीन भारत,

  • खलजी कालीन भारत,
  • तुग़लक़ कालीन भारत भाग 1, 2 (अलीगढ़ यूनीवर्सिटी)